चंडीगढ़,
26 अक्टूबर, 2019
“दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों
सत्ता की होड़ में चुनाव प्रचार के दौरान एक-दूसरे को जमकर अपमानित करने वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) व जननायक जनता पार्टी (जजपा) ने हरियाणा में मिलकर सरकार बनाने का ऐलान कर आख़िरकार बशीर बद्र के इस शेर को सही साबित कर दिया.
हालही के चुनाव प्रचार के दौरान दोनों दलों के नेताओं ने मतदाताओं को लुभाने के लिए एक-दूसरे को कभी बंदर कभी सांड की संघ्या देकर खूब तंज कसे और लगातार ये भी दावे किये गए कि चुनाव के बाद किसी भी परिस्थिति में केवल सत्ता के लिए दोनों दल एक साथ नहीं जाएंगे पर सत्ता के जलवे ने शुक्रवार रात सभी आदर्शों और दावों को दरकिनार कर दिया जब भाजपा धुरंधर अमित शाह ने बीजेपी-जेजेपी गठबंधन का ऐलान क्रमशः मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री के पदों की शर्तों के साथ किया और मनोहर लाल खट्टर व दुष्यंत चौटाला दोनों उंगलियां उठाकर (victory sign) एक साथ फोटो खिंचवाते नज़र आए.
इस नज़ारे पर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस व सत्तासुख की आस में नयन बिछाए बैठे निर्दलीय उम्मीदवारों के अलावा अगर और कोई दाँतों तले ऊँगली दबाए बैठा था तो वो था भाजपा का मुख्य समर्थक गैर-जाट मतदाता व जजपा के पीछे बावला हुआ जाट मतदाता, हालांकि अपने अहम का सौदा होते देखते इन मतदाताओं ने सोशल मीडिया पर खूब गुबार निकाला, कहीं किसी पार्टी के झंडे जलते दिखाए गए तो कहीं नेताओं को जमकर अपशब्द निकाले गए.
खैर इस परिस्थिति में नेताओं के हाथों मजबूर दोनों दलों के मतदाताओं के लिए भी विख्यात कवि दुष्यंत कुमार ने खूब लिखा है..
“जिस तरह चाहो बजाओ तुम हमें
हम नहीं हैं आदमी हम झुनझुने हैं”
एक-दूसरे के विरुद्ध चुनाव लड़े, सीटें जीतने के लिए मंच से एक-दूसरे को गालियां भी निकाली, आरोप-प्रत्यारोप का भी खूब सहारा लिया गया और सत्ता के लोभ में स्थाई सरकार देने के बहाने अब एक हो जाना राजनीति का बहुत पुराना ढकोसला है जिसका शिकार खुद भाजपा के अब तक के सबसे लोकप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी अक्सर होते रहे और सिसायत के इस अवगुण के खिलाफ इंटरनेट पर वाजपेयी के भाषण आज भी युवाओं द्वारा सबसे ज्यादा पसंद किए जाते हैं.
बहरहाल, एक बात तो तय है और राजनीतिक विशेषज्ञ भी यह मानते हैं कि इस समझौते का खामियाज़ा निश्चित तौर पर दोनों भाजपा व जजपा को भुगतना पड़ेगा क्यूंकि आज के दौर में सोशल मीडिया के शसक्त होने से जनता के प्रति नेताओं की जवाबदेही बढ़ी है चूँकि आज आप कोई दावा करते हैं और कल मुकरते हैं तो लोग सोशल मीडिया पर बिना विलम्ब आपकी पोल खोल के रख देते हैं और शायद कल रात गंठबंधन के ऐलान के बाद से हरियाणा में हो रहा है जिसके तहत जजपा व भाजपा नेताओं कथनी-करनी के अंतर वाली वीडियो खूब वायरल हो रही हैं.
परन्तु देखना यह है कि सत्ता की चाह में मजबूरी वश एक-दूसरे के साथ अलग-अलग विचारधारा वाले आए भाजपा और जजपा कब तक एक-दूसरे को झेल पाते हैं, कितनी शर्तें परवान चढ़ पाएंगी, मतदाताओं के बीच जाकर क्या स्पष्टीकरण दिया जाएगा और सबसे बड़ी बात ये के सत्ता में जेजेपी को हिस्सेदारी देकर भाजपा दुष्यंत की जड़ों को मजबूत करेगी या फिर बिहार स्वरुप की तरह जजपा के राजनीतिक कर्रिएर को लगाम देगी जैसा की कईं राजनीतिज्ञों का मानना है.
इसी तरह दुष्यंत को साथ लेने से भाजपा को राजनीतिक तौर पर क्या-क्या नुकसान होंगे, तथाकथित पारदर्शी सरकार चलाने में बीजेपी कितनी सफल रहेगी, अपने पारम्परिक समर्थक गैर-जाट तमगे व जजपा के जाट तमगे के बीच समन्वय स्थापित करने और दोनों समुदायों के हितों की अगुवाई करने में नई सरकार किस हद तक कामयाब रहेगी?
वहीँ यह भी देखने वाली बात है कि जजपा के भाजपा के साथ आने से अब निर्दलीय उम्मीदवारों का ऊँट किस करवट बैठेगा और हरियाणा की राजनीति के दिग्गज माने जाने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा अब क्या राजनीतिक बिसात बिछाएंगे?
90 विधानसभा सीटों वाले हरियाणा में 2019 का ‘राज रण’ बहुत दिलचस्प रहा और जींद उपचुनाव में जाट, गैर-जाट समीकरण व लोकसभा चुनावों में मोदी मैजिक के सहारे जीत हासिल कर अति-आत्मविश्वास का शिकार हुई भारतीय जनता पार्टी हरियाणा विधानसभा चुनावों में ’75 पार’ के लक्ष्य का पीछा करते-करते औंधे मूँह गिरी और 40 सीटों पर सिमट गई.
मुख्यमंत्री खट्टर व स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज को छोड़ कर सत्तारूढ़ पार्टी के सभी दिग्गज व मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा है जिनमे प्रमुख हैं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला, शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा, कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़, वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु, शहरी निकाय मंत्री कविता जैन, परिवहन मंत्री कृष्ण लाल पवार, सहकारिता मंत्री मनीष ग्रोवर, सामाजिक न्याय अधिकारिता कृष्ण बेदी व खाद्य आपूर्ति मंत्री कर्णदेव कम्बोज.
वहीँ पार्टी नेताओं में आपसी फूट के लिए चर्चित हताश कांग्रेस पार्टी ने पूर्व सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा व नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा के नेतृत्व में उम्मीदों के परे प्रदर्शन किया और 31 सीटें जीत कर रेस में वापसी की.
सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित जजपा ने किया और 10 सीटें जीत कर सत्ता की चाबी लेकर उभरी, वहीँ इनेलो की तरफ से केवल एक सीट अभय सिंह चौटाला व हरियाणा लोकहित पार्टी की तरफ से एक सीट गोपाल कांडा ने जीती जबकि सात निर्दलीय उम्मीदवार जीत कर आए और मामला त्रिशंकु विधानसभा (Hung Assembly) पर आकर अटक गया.
फिर शुरू हुई जोड़-तोड़ की राजनीति और निर्दलीय उम्मीदवारों के साथ सरकार बनाने का सपना संजोने वाली भाजपा को कांडा को साथ लेने की वजह से अपार आलोचना का सामना करना पड़ा और अंततः जेजेपी को साथ ले सरकार बनाने का ऐलान किया गया.
इलेक्शन में पता नहीं क्या-क्या रंग और मिज़ाज़ देखने को मिलते हैं, मजबूरियां दोस्तों में दूरी व दुश्मनों में नज़दीकियां बढ़ा देती हैं, उत्साह में आकर आलोचना व ना चाहते हुए प्रशंसा भी करनी पड़ जाती है या फिर यूँ कहिए की कईं बार हाल ऐसा भी होता है जैसा की आज हरियाणा में कईं निर्दलीय उम्मीदवारों का है जिनको कुछ दिन भाजपा ने टिकट न देकर बेइज़्ज़त किया मगर अब वो सब फिर से सरकार में रहकर भाजपा परिवार का हिस्सा बनेंगे और सरकार का गुणगान भी करना पड़ेगा।
ऐसे में चलते-चलते मरहूम आफ़ताब लखनवी का एक शेर इस परिस्थिति पर भी फिट बैठता है….
“तरह-तरह की ग़िज़ा (पौष्टिक भोज) मिलती हैं इलेक्शन में
कहीं पुलाव तो कहीं पूरियां भी होती हैं,
वो किसको वोट दे जो हर तरफ का खाए हो
नमक हलाल की मज़बूरियां भी होती हैं”