‘लोकलाज’ के नारे लगाने वाला चौटाला परिवार बना ‘लोकापवाद’ का विषय

चंडीगढ़,
26 जनवरी, 2019 


“मैं ऐसा ख़ूबसूरत रंग हूँ दीवार का अपनी
अगर निकला तो घरवालों की नादानी से निकलूंगा”

आपसी कलह और फूट का शिकार होकर अपनी चमक खोने वाले राजनीतिक परिवारों की दशा को बाखूबी से बयां करती हैं मशहूर शायर जफ़र गोरखपुरी की ये पंक्तियाँ।

यूँ तो राजनीतिक परिवारों में उत्तराधिकार की लड़ाई सदियों पुरानी है परन्तु हरियाणा में इसका ताज़ा उदहारण है चौटाला परिवार। पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने अनुशासनहीनता के लिए बड़े बेटे अजय व उनके पुत्रों दुष्यंत और दिग्विजय को इंडियन नैशनल लोकदल (इनेलो) से निकाला तो निष्कासित सदस्यों ने खड़ी कर दी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) और राजनीति में उनके ही प्रतिद्वंदी बनकर खड़े हो गए।

सबसे बड़ी बात ये के कभी ‘लोकराज’ के लिए ‘लोकलाज’ की राजनीति करने वाला चौटाला परिवार आज आपसी कलह और राजनीतिक स्वार्थों की बदौलत ‘लोकापवाद’ का विषय बन चुका है।

पारिवारिक मतभेदों के चलते टूटी इनेलो और उसमे से हाल ही में पनपि जेजेपी ने न सिर्फ हर चुनावी मोर्चे को जंग का मैदान बना लिया है बल्कि कभी सत्ता के गलियारों में प्रदेश के सबसे सशक्त व अनुशासित कुटुम्ब माने जाने वाले चौटाला परिवार के सदस्यों में आज राजनीतिक वर्चस्व के लिए एक-दूसरे के खिलाफ ही आरोप-प्रत्यारोप की होड़ लगी है।

सियासत, कैसे रिश्ते-नातों और मर्यादाओं पर भारी पड़ती है यह जींद उपचुनाव के प्रचार-प्रसार के दौरान देखने को मिला।

जींद उपचुनाव में एक-दूसरे पर अपनी प्रभुता कायम करने के उदेश्य से दोनों तरफ से भरपूर प्रयास किया जा रहा है। दुष्यंत ने जहां अरविन्द केजरीवाल से हाथ मिला लिया तो वहीँ इनेलो उम्मीदवार के प्रचार के लिए आने वाले ओमप्रकाश चौटाला की पैरोल में बाधा उत्पन हो गयी और दोष आया केजरीवाल-दुष्यंत गठबंधन पर। फिर क्या था, फिर शुरू हुआ सोशल मीडिया पर छींटाकसी का दौर।

दादा ओमप्रकाश चौटाला ने अलग रुख इख़्तियार करने वाले अपने पोतों दुष्यंत और दिग्विजय को अपनी पैरोल रद्द होने का षड्यंत्रकारी करार देते हुए ‘गद्दार’और ‘देशद्रोही’ जैसी संघ्या दे डाली तो दादी स्नेहलता का वीडिओ सामने आया जिसमें दोनों पोतों को ‘नालायक’ बताते हुए अर्थी तक को भी हाथ न लगाने की नसीहत दी है।

इनेलो की बागडोर संभाल रहे विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष चाचा अभय सिंह ने भी अपने भाई और भतीजों से पारिवारिक सम्बन्ध ख़त्म करने का ऐलान कर दिया।

‘लोकराज, लोकलाज से चलता है’, शायद जननायक देवीलाल के इस मूल मंत्र को दो-फाड़ हुआ चौटाला परिवार आत्मसात करने में असफल होता दिखाई दे रहा है।

भले ही ओमप्रकाश चौटाला और उनकी तरफ खड़े छोटे बेटे अभय सिंह व समर्थक आज अजय सिंह के परिवार पर ढेरों आरोप लगा रहे हों परन्तु राजनीतिक मतभेदों के चलते अलग रुख इख़्तियार करने की यह प्रथा उनके परिवार में नयी नहीं है।

पूर्व उप-प्रधानमंत्री और जननेता देवीलाल का यह वटवृक्ष लगभग तीन दशक पहले भी ये सब देख चुका है जब ओमप्रकाश चौटाला ने अपने भाई रणजीत चौटाला को दरकिनार कर देवीलाल की राजनीतिक विरासत हांसिल की थी और वर्तमान में भी दुष्यंत-अभय की लड़ाई उत्तराधिकार को लेकर है बस परिस्थितियां और अंदाज़ नए हैं।

इस परिस्थिति पर ये लाइनें खूब जमती हैं,


‘नए किरदार आते जा रहे हैं,
मगर नाटक पुराना चल रहा है’।

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