किसान आंदोलन: जेजेपी के लिए राजनीतिक जनाधार मजबूत करने का बेहतर अवसर

 

डॉ नवीन रमण 

चंडीगढ़, 

28 नवंबर, 2020

 

दुष्यंत चौटाला की पार्टी के पास जननायक की विरासत पर असल दावा ठोकने का सही मौका 

 

हालहि में केंद्र सरकार द्वारा कृषि से सम्बंधित लाए गए कानूनों के विरोध में छिड़ा किसान आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा बल्कि हर बार उग्र रूप में किसान सड़कों पर आ रहे हैं।

 

वैसे तो किसान कोई ऐसी मांग नहीं कर रहे हैं जिसे सरकार मना कर रही हो, मतलब दोनों के बीच कोई मतभेद की दीवार नहीं है। फिर भी हंगामा या विवाद दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

 

किसान आंदोलन के साथ हरियाणा की राजनीति में भी ग्रह चाल बदलने के आसार दिखाई दे रहे हैं।

 

जहां एक तरफ एमएसपी और मंडी व्यवस्था को लेकर किसान आंदोलन निरंतर आगे बढ़ रहा है, वहीं दूसरी तरफ हरियाणा की राजनीति पर इसका असर पडना स्वभाविक है।

 

ऐसे में प्रदेश सरकार में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सहयोगी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) पर सबसे ज्यादा दबाव साफ झलकता है, क्योंकि जजपा अपने आप को ताऊ देवीलाल के आदर्शों पर चलने वाली पार्टी बताती है।

 

किसानों की मांगों को सरकार की तरफ से कथित तौर पर अनदेखा किया जा रहा है और इस अनदेखी में दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी भी शामिल है। ऐसी स्थिति में जेजेपी की राजनीतिक विश्वसनीयता खतरे में पड़ सकती है।

 

रामकुमार गौतम के शब्दों में कहें तो “सौदा ए कीमे नहीं रहेगा”।

 

सरकार के साथ बना रहना जेजेपी के लिए आत्मघाती कदम साबित हो सकता है।

 

ऐसी विकट स्थिति में जननायक जनता पार्टी को अपने राजनीतिक भविष्य को सँवारने, मजबूत करने के लिए किसानों की आवाज़ को बुलंद कर सरकार से गठबंधन तोड़ने का सबसे उचित समय है। राजनीति में इस तरह के उचित अवसर बार-बार नहीं आते।

 

अगर जेजेपी ने अभी निर्णय नहीं लिया तो यह उसके भविष्य के लिए काफी खतरनाक साबित होगा, क्योंकि उसका मूल वोटर ग्रामीण और किसान पृष्ठभूमि का है। इसलिए उसकी भावनाओं के अनुकूल सरकार से गठबंधन तोड़ना सटीक निर्णय होगा और अपनी खोई हुई विश्वसनीयता को वापस पाने का बेहतर अवसर है।

 

जननायक जनता पार्टी क्या निर्णय लेती है, यह उसके भविष्य की राजनीति को निर्धारित करेगा। अगर जननायक जनता पार्टी गठबंधन तोड़ती है तो बीजेपी के लिए सरकार बनाए रखना असंभव काम होगा और ऐसी स्थिति में दोबारा चुनाव होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। पूरी संभावना है कि चुनाव में बीजेपी अपना जनाधार खो देगी या फिर जेजेपी को साथ रखने के लिए किसानों की मांगों को मान लिया जाएगा। दोनों ही स्थितियों में जेजेपी के हाथ में सत्ता की चाबी बनी रहेगी।

 

आने वाले कुछ दिनों में जेजेपी के कदमों पर हरियाणा के राजनीतिक भविष्य को लेकर नजरें टिकी रहेंगी।

 

फिर किसान आंदोलन क्यों कर रहे हैं?

 

क्योंकि सरकार जिन बातों को वर्बली कह रही है, उन्हें लिखित कानून बनाने से बच रही है। यह बचाव की मुद्रा किसानों के भीतर भविष्य को लेकर भय पैदा कर रही है। यह भय ही किसान आंदोलन का रूप ले रहा है, भले ही विपक्ष इसमें अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहा है। पर सरकार यह कहकर अपना काम नहीं चला सकती कि किसानों को विपक्षी बहका रहे हैं। आपके पास तो ऐसी शक्ति है कि एक कलम से लिखित कानून बनाकर विपक्ष की कमर तोड़ दो और किसानों को भय मुक्त कर दो। आखिर इतनी सीधी सपाट बात सरकार को समझ क्यों नहीं आ रही? क्या स्थितियां ओर ज्यादा खराब होने का इंतजार किया जा रहा है?

 

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