चंडीगढ़,
28 फरवरी, 2019
हरियाणा में हुए पिछले विधानसभा चुनावों में पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का प्रदेश में विजय अभियान जारी है और इसी के अंतर्गत हाल ही में हुए पांच महत्वपूर्ण निकाय चुनावों व बहुचर्चित जींद उपचुनाव में भी सत्तारूढ़ दल ने बाज़ी मारी।
जींद विधानसभा उपचुनाव इसलिए ज्यादा अहम रहा क्योंकि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद जहाँ जींद उपचुनाव में मिली जीत भाजपा के लिए राहत की सांस की तरह आई वहीँ ‘जाटलैंड’ में जींद विधानसभा पर पहली बार भगवा लहराया।
निसंदेह, आज के दिन भाजपा के सभी हाथों में लड्डू हैं क्यूंकि विपक्ष बिखरा हुआ है और विरोधी दल अंदरूनी कलह से जूझ रहे हैं पर अब सवाल खड़ा होता है के सत्तारूढ़ भाजपा व सशक्त नेता के रूप में उभरे इसके नेता मनोहर लाल खट्टर और उनकी टीम क्या आगामी विधानसभा मुकाबलों में विरोधी खेमों से दिग्गजों के दुर्ग फ़तेह कर पाएगी।
इन्हीं जटिल विधानसभाओं में बहुत अहम है जींद से लगती कैथल विधानसभा जो पिछले 15 सालों से कांग्रेस के कब्ज़े में है या फिर यूँ कहिये कि जींद की तरह कैथल भी ऐसी विधानसभा हैं जहाँ भाजपा आज तक नहीं जीती।
सबसे अहम ये के वर्तमान में कैथल कांग्रेस के धुरन्धर एवं पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला की कर्मभूमि है। भले ही हाल ही के जींद उपचुनाव में वो हार गए लेकिन उसे रणदीप के राजनीतिक कद से नहीं जोड़ा जा सकता और यह भी स्मरणीय है के रणदीप सुरजेवाला के आने से ही न केवल जींद उपचुनाव में रोमांच आया था बल्कि उम्मीदवारों के अभाव से जूझ रही कांग्रेस की जमानत भी वो ही बचा सकते थे।
फिर कैथल को तो अब रणदीप का घर मन जाता है प्रदेश की राजनीति पर पकड़ रखने वालों का मानना है कि ऐसा नहीं है कि इस गढ़ को तोड़ने में बीजेपी कामयाब नहीं हो सकती। वजह चाहे कुछ भी हो, लेकिन इन सीट पर शायद अभी तक कुछ प्लान भी नहीं किया गया है।
रणदीप सुरजेवाला जाट समुदाय से हैं और कैथल विधानसभा में कुल वोटों का तकरीबन पांचवां हिस्सा जाट वोटबैंक है जो की अभी तक चुनाव में रणदीप के ही पक्ष में जाता है। सुरजेवाला की मुख्य ताकत है युवा। कैथल के नौजवानों में रणदीप की पकड़ कबीले तारीफ है।
इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए रणदीप सुरजेवाला जैसे मजबूत उम्मीदवार को काउंटर करने के लिए बीजेपी को कैथल में भी मजबूत सियासी बिसात बिछानी होगी।
जाटों के अलावा गुर्जर, बनिया, पंजाबी व ब्राह्मण वोटें मुख्य हैं।
जातिगत समीकरण, युवा पीढ़ी की अपेक्षा और राजनीतिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए भाजपा को कोई मजबूत चेहरा ही रणदीप के विरुद्ध चुनाव में उतरना होगा अन्यथा कैथल में सत्तारूढ़ दल की खिल्ली उड़ने की पूरी-पूरी संभावनाएं भी हैं।
चूँकि अभी तक इनेलो कैथल में पंजाबी उम्मीदवार पर दांव लगाती रही है और हाल ही में चर्चा में आई नवगठित जननायक जनता पार्टी ने रोड़ समुदाय से रणदीप कौल को जिला अध्यक्ष बनाया है।
वर्तमान में कैथल सीट पर भाजपा के पास मजबूत दावेदारी के तौर पर गुर्जर और बनिया समुदाय हैं और शायद इसीलिए हरियाणा में गुर्जरों का सबसे भारी गाँव माने जाने वाले क्योड़क (कैथल) को मुख्यमंत्री खट्टर ने राजनीतिक सूझ-बूझ के तहत गोद लिया था।
कैथल में बीजेपी के पास विकल्प के तौर पर यूँ तो बनिया समुदाय के अरुण शर्राफ भी है जो की संघ (आरएसएस) वाले इन्द्रेश के भाई हैं। हालंकि युवा वोटर्स उन्हें एक बुजुर्ग के रूप में देखते हैं और सबसे बड़ी बात ये के संघ में वरिष्ठ पद पर आसीन इंद्रेश अपने किसी पारिवारिक सदस्य के लिए चुनाव लड़वाने को लेकर चर्चा में आएं इसकी रत्ती भर सम्भावना हैं।
बनिया समुदाय से ही सुरेश गर्ग नौच भी भाजपा के दावेदार के रूप में काफी सक्रीय हैं परन्तु लोगों का मानना है कि वो राजनीतिक महत्वकांक्षाओं के चलते कभी भी पार्टी बदलने में नहीं चुकेंगें। ऊपर से गर्ग का राजनीतिक कद भी रणदीप के बराबर का नहीं है।
अब रही बात गुर्जर दावेदारों की, इनमें मुख्य नाम हैं पूर्व इनेलो विधायक लीला राम व पिछली बार भाजपा के उम्मीदवार रहे राव सुरेंद्र।
हालंकि लीला राम का भाजपा में कोई गॉडफादर नहीं हैं जबकि राव सुरेन्द्र पर पिछली बार की हार की छाप तो है ही और लोकप्रियता की कमी भी आड़े आती है। चुनाव में हार के बाद उनका मतदाता से संपर्क भी कम हुआ है।
बीजेपी के मौजूदा जिला प्रधान अशोक गुर्जर डांढ पुण्डरी हलके से संबंध रखते हैं। इस वजह से कैथल शहर में उनकी पकड़ बहुत ज्यादा नहीं बन रही है। पूर्व जिला प्रधान राजपाल तंवर और मौजूदा जिला परिषद वाइस चेयरमैन मुनीष कठवाड़ भी भाजपा की टिकट के लिए प्रयासरत हैं हालाँकि सुरजेवाला के सामने इन सब का राजनीतिक कद प्रयाप्त नहीं हैं।
last but not least (अंतिम पर कम नहीं), अबकी बार कैथल विधानसभा से एक और युवा नेता की एंट्री हो रही है।चंडीगढ़ स्थित पंजाब यूनिवर्सिटी व छात्र राजनीति में मजबूत नेता के रूप में लोहा मनवाने वाले नरेंद्र गुर्जर ने भी कैथल में अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं।
मूल रूप से कैथल जिले से सम्बन्ध रखने वाले नरेंद्र गुर्जर पंजाब एंव हरियाणा हाई कोर्ट में एडवोकेट हैं व वर्तमान में बीजेपी की तरफ से पंजाब की राजपुरा विधानसभा के प्रभारी हैं।
प्रदेश के रोहतक, हिसार, पानीपत, करनाल और यमुनानगर में हाल ही में हुए नगर निगम चुनावों में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा समेत कांग्रेस के कई दिग्गजों को भाजपा ने उन्हीं के गढ़ में पटकनी दी है, अब एक मात्र दिग्गज रणदीप सुरजेवाला का गढ़ कैथल बचा हुआ है जहाँ तक बीजेपी की जीत का अश्वमेध घोड़ा पहुंच नहीं पा रहा है।
अब देखना ये है कि रणदीप सुरजेवाला जिस तरह से मजबूत बन कर उभर रहे हैं उन्हें काउंटर करने के लिए बीजेपी कैथल में क्या दांव खेलती है।
Narender Gujjar
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